You may also Like-
होठों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते- शायर बशीर बद्र
ये एक बात समझने में रात हो गई है
जो उतर के ज़ीना -ए -शाम से
तेरी चश्म -ए -खुश में समा गए
वही जलते बुझते से मेहर -ओ -माह
मेरे बाम -ओ -दर को सजा गए
ये अजीब खेल है इश्क़ का
मैंने आप देखा ये मोजज़ा
वो जो लफ्ज़ मेरे गुमां में थे
वो तेरी जुबां पर आ गए
वो जो गीत तुम ने सुना नहीं
मेरी उम्र भर का रियाज़ था
मेरे दर्द की थी दास्ताँ
जिसे तुम हंसी में उड़ा गए
वो चिराग़ -ए -जां कभी जिस की लौ
ना किसी हवा से निगुण हुई
तेरी बेवफाई के वसवसे
उसे चुपके चुपके बुझा गए
वो था चाँद शाम -ए -विसाल का
के था रूप तेरे जमाल का
मेरी रूह से मेरी आँख तक
किसी रौशनी में नहा गए
ये जो बन्दगान -ए -नियाज़ हैं
ये तमाम है वो लश्करी
जिन्हें ज़िंदगी ने अमां न दी
तो तेरे हुज़ूर में आ गए
तेरी बेरुखी के दयार में
मैं हवा के साथ हवा हुआ
तेरे आईने की तलाश में
मेरे ख्वाब चेहरा गँवा गए
तेरे वसवसों के फ़िशार में
तेरा शहर -ए -रंग उजड़ गया
मेरी ख्वाहिशों के ग़ुबार में
मेरे माह -ओ -साल -ए -वफ़ा गए
वो अजीब फूल से लफ्ज़ थे
तेरे होंठ जिन से महक उठे
मेरे दश्त -ए -ख्वाब में दूर तक
कोई बाघ जैसे लगा गए
मेरी उम्र से न सिमट सके
मेरे दिल में इतने सवाल थे
तेरे पास जितने जवाब थे
तेरी एक निगाह में आ गए
1 comment ›