Chaahat- चाहत


इन सुर्ख गीली सीपियों पे बोझ ढाना चाहता हूँ।
अश्क़ के कतरों को मैं मोती बनाना चाहता हूँ।

मतले लिखता हूँ कि जब भी टीस उठती है मुझे।
दर्द के हर हर्फ़ से ग़ज़लें सजाना चाहता हूँ।

सहरा की सूखी हवा से थोड़ा पानी सोखकर।
याद के बादल बना खुद को भीगाना चाहता हूँ।

पांव का छाला न ये, जब तक मुझे ग़ाफ़िल करे।
बेवफा की उस गली से रोज़ जाना चाहता हूँ।

चांद की मौजूदगी हो, हो सितारे भी वहां।
उनको आशिकी के फिर, किस्से सुनाना चाहता हूँ।

जो अधूरी ही रही, न हो सकी पूरी कभी।
अपनी ऐसी हसरतों पे मुसकराना चाहता हूँ।

तिनके से, कपास से बाना के एक घोंसला।
इस शहर से दूर जा, एक घर बसाना चाहता हूँ।

गुज़ार दी जो अब तलक, थी नागवार दास्ताँ।
जो बची ज़िन्दगी वो शायराना चाहता हूँ।

नाप के नहीं मुझे अब बेहिसाब चाहिए।
फेंक के ये जाम, पूरा मयखाना चाहता हूँ।

पेड़ के सहारे से, नदी के इक किनारे पे।
पांव पानी में डुबा, कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ।

माँ की याद आती है मैं जब भी तन्हा होता हूँ।
उसके पल्लू से लिपट के सो जाना चाहता हूँ।।

-मुसाफिर
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4 comments

  1. ज़बरदस्त … आज के बाद मेरी तारीफ़ कर के शर्मिंदा मत करना ।☺️
    ऐसा ही कुछ लिखने की चाहत है हमारी भी ।।👍👍

    Liked by 3 people

    • धन्यवाद अजीत जी। आपकी लेखनी का मैं और मुझ जैसे बोहत से लोग कायल हैं। लिखते रहिए, भाव अभिव्यक्त करते रहिए। 🙏

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  2. Lines direct from core of the heart which touched the soul. The soul which has been silent since a long now gets cautiousness.

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