उस से मिलना तो “हाल-ए-दिल ” न बताना।
तन्हा कैसे कटी “उम्र-ए-ग़ाफ़िल ” न बताना।।
न मिले निगाहों से निगाह “याद ” रहे।
“अज़ीम-ए-गुनाह-ए-संगदिल” न बताना।।
जो पूछे हाल तो करना “ख़ैरियत ” ही बयां ।
“अज़ाब-ए-जख्म-ए-कातिल ” न बताना।।
बिछड़ना फिर से, तो चेहरे पे “मुस्कान” रहे।
“दर्द-ए-दिल-ए-बुज़दिल ” न बताना।।
– “मुसाफिर”
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Waah
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