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अजब कोरोना काल है, इसमें बीमार होना मुहाल है।
बीते दिनों मैं बीमार पड़ा, टाइफाइड वायरल के हत्थे चढ़ा।
हालत तो हुई पतली मेरी, पर ज़माने का भी पता चला ॥
सहयोगियों की तिरछी निगाहों का सामना हुआ।
मेरी परछाई से भी डर के उनका भागना हुआ।
बदले इस व्यवहार को मुश्किल मानना हुआ ॥
मेरी सोच, उनका व्यवहार देख के बदल गई।
देख आचरण ऐसा, बिमारी और भी प्रबल भई।
हुई दवा बेअसर मुझपे, मनोदशा ऐसा मसल गई॥
उस पर अकेलेपन का एहसास उभर आया।
बंद चार दीवारों में, मौत का कुआँ नज़र आया।
रेंगते कीड़ों को देख, अवसाद और गहराया ॥
ऐसे में महादेव के दर्श ने साहस बढ़ाया।
अचेतन अवस्था में मुझे ये समझाया।
पकड़ ले घर का रस्ता, ले ले तू परिवार का साया॥
घर के प्रांगण में घुसते ही चेतना सी आ गई।
अपनों के सानिध्य से जीवन की प्रेरणा छा गई।
ज्यों मरू को सावन की झड़ी कलेजे से लगा गई॥
शुक्र है कोरोना नहीं था वरना क्या हाल होता?
इस डरावने माहौल में तो अस्पताल भी न मुहाल होता।
बहुतों की तरह मैं भी बन गया बेताल होता॥
यूँ तो इस दौर में हमदर्द भी मुझे मिले।
पूछा हाल, रहे संवेदनाओं के सिलसिले।
शुभकामनाएं उन्हीं की जो हम वापस मिले॥
माना बड़ा मायूसी भरा है यह काल।
पर रखें सावधानी और अस्वस्थों का ख़याल।
बढ़ाएं उत्साह उनका, रखें हृदय विशाल॥
भले पास न जाएँ, पर देख के तो मुस्काएं हम।
कोरोना के नाम पे, करुणा न बिसरायें हम।
है देवत्व गुण हमारा, आओ इसे अपनाएं हम॥
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About the Author
Dr Rakesh Kumar Sharma
A chemistry genius and a poet at heart, Dr. Sharma writes poems with humour and satire on contemporary issues. He calls himself An Intolerant Indian owing to his straight forwardness.
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