कागज़ फाड़ दिए मैंने

Lonely Musafir's avatarLonely Musafir

कागज़ फाड़ दिए मैंने



useless-degrees.jpg



सींचे थे खून पसीनों से,
लिख पढ़ के साल महीनों से,

रद्दी के जो ज़द हुवे,
निरर्थक जिनके शब्द हुवे,

पुरानी उपाधियां, प्रमाणपत्र,
आज झाड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।



letters.jpg



डूबे थे इश्क़ जज़्बातों में,
खाली दिन सूनी रातों में,

मेहबूब की मीठी बातों में,
यौवन की बहकी यादों में,

ताकों से तकियों तक वो,
सारे रिश्ते गाड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।



termite currency.jpg



तिन-तिन कर संपत्ति जोड़ी मैंने,
निज सुख तजकर जो थोड़ी मैंने,

रिश्ते नातो से मुँह मोड़,
सब बंधन प्यारे के तोड़-छोड़ ,

नोट, गड्डियों से चिपके वो,
दीमक मार दिए मैंने,
कागज़ फाड़ दिए मैंने।



friends



यारों की तस्वीरें थी,
रूठी हुई तकदीरें थी,

गुज़रे दिन, ओझल जज़्बात,
थके हुवे अब दिन ये रात,

भूले बिसरे जाने कितने ,
चेहरे ताड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।



kopal



जीवन की आपा धापी में,
मैं रहा जाम और साकी में,

बंजर राहों पे बरसा में,
हरियाली को…

View original post 17 more words

2 responses to “कागज़ फाड़ दिए मैंने”

  1. Sameer Sharma avatar
    Sameer Sharma

    Best Poetry

    Like

Leave a reply to Lonely Musafir Cancel reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.