कागज़ फाड़ दिए मैंने
सींचे थे खून पसीनों से,
लिख पढ़ के साल महीनों से,
रद्दी के जो ज़द हुवे,
निरर्थक जिनके शब्द हुवे,
पुरानी उपाधियां, प्रमाणपत्र,
आज झाड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।
डूबे थे इश्क़ जज़्बातों में,
खाली दिन सूनी रातों में,
मेहबूब की मीठी बातों में,
यौवन की बहकी यादों में,
ताकों से तकियों तक वो,
सारे रिश्ते गाड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।
तिन-तिन कर संपत्ति जोड़ी मैंने,
निज सुख तजकर जो थोड़ी मैंने,
रिश्ते नातो से मुँह मोड़,
सब बंधन प्यारे के तोड़-छोड़ ,
नोट, गड्डियों से चिपके वो,
दीमक मार दिए मैंने,
कागज़ फाड़ दिए मैंने।
यारों की तस्वीरें थी,
रूठी हुई तकदीरें थी,
गुज़रे दिन, ओझल जज़्बात,
थके हुवे अब दिन ये रात,
भूले बिसरे जाने कितने ,
चेहरे ताड़ दिए मैंने,
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।
जीवन की आपा धापी में,
मैं रहा जाम और साकी में,
बंजर राहों पे बरसा में,
हरियाली को…
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