वो पल जो मैंने खो दिए , रोटी की आज़त में ।
रूठे से मुझसे मिलते हैं , जब शाम होती है।।
परिंदा जो उड़ के सुबहो को दाना कमाने जाता है ।
ज़ख़्मी बदन आता है वो , जब शाम होती है।।
दरिया को भी अब देखकर मैं खौफ खाता हूँ ।
मेरा सूरज निगल जाता है वो , जब शाम होती है।।
वो शायर है, दिन में महफिलों में शेर पढता है ।
वो टूटा है, बिखर जाता है, जब शाम होती है ।।
लगता था जिसको मौत क्या ले जायेगी उसका ।
क्यों डरता है? सहम जाता है , ज़िन्दगी की जब शाम होती है ।।
-मुसाफिर
PC- Google Images
बहुत अच्छी
सच में दिल छू गयी
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Thanks afzAl
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My pleasure
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Lovely… Amazing
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Kya kahoo kuch kehna hai mushkil … teri har nazm asar kar jaati hai.. jab shaam hoti hai..
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Ha ha ha thanks vismita.
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Good one Bhai..
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Thanks Surabh Mishra
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Gulzar jaisa feel aata hai isme. Very nicely composed
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Thanks sameer
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